Monday, 20 April 2020

सच्ची श्रद्धांजली

*शीर्षक: सच्ची श्रद्धांजली*

कहाँ चला तू अ संन्यासी
कदम बढ़े किस दिक् की ओर
पिता सिधारे बैकुंठ धाम को
जननी है तेरी आंसुओ से सराबोर।

तुझे पुकारे तेरे अपने
आ कर ले अंतिम दर्शन आज
नही मिलेगा फिर यह अवसर
संपन्न हो जाएंगे सगरे काज।

मैं तो चला हूँ कर्मक्षेत्र को
जहाँ मचा है क्रंदन अपार
कुछ मानव हैं कोरोना पीड़ित
कुछ भूख से कर रहे हाहाकार।

हाँ, है दुःख मुझे
हुआ हूँ आज पिता से वंचित
पर अति असहनीय होगा ये
यदि हुआ मैं कर्त्तव्य से वंचित।

है पहला धरम मेरा
भूखे को भोजन कराना
रोगी जो तड़पते रोग से
उन्हें जीवन की आस बंधाना।

जो कैद हैं घरों में अपने
उन तक हर सुविधा पहुंचाना
बढ़ते जा रहे कोरोना के
कदमों पे अंकुश लगाना।

हूँ लोक से मैं विरक्त
जनता के दुःख से विरक्त नहीं
है राज स्वीकारा सेवा की खातिर
सुख-वैभव से मैं आसक्त नहीं।

केवल स्व की खातिर जीना
होता ये राजधर्म नही
जनहित खातिर सर्वस्व लुटाना
राजसेवक का कर्म यही।

प्रथम कर्त्तव्यपालन, शेष गौण
पिता से ही शिक्षा पायी है
संकट में फंसे देश को भूलूँ
ये अनीति कभी ना अपनायी है।

करके देश को स्वस्थ, अभय
अपना सेवक धर्म निभाऊंगा
कोई व्यक्ति ना रहे भूखा कही
मैं प्रतिपल दौड़ता जाऊंगा।

पिता मेरे थे बड़े सरल
सहर्ष स्वीकारेंगे मेरेआंसुओं की बलि
देश पा जायेगा जब कोरोना से मुक्ति
वही होगी मेरी पिता को सच्ची श्रद्धांजली

रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर

पृथ्वी की पुकार


पृथ्वी दिवस के अवसर पर लिखी गयी यह कविता सभी भारतवासियों को समर्पित🙏🙏🇮🇳🇮🇳

*शीर्षक: पृथ्वी की पुकार*

है थम गया सारा कोलाहल
धरा हौले हौले मुस्कुराने लगी है।
दब गई थी जो प्रदूषण के नीचे
वह उमंगे बाहर आने लगी हैं।

है मानव आज आबद्ध जंजीरों में
कोरोना ने विश्व को बंदी किया है।
मानव का सर दर्द बढ़ता जा रहा
पर धरा के लिए ये वरदान बना है।

 हैं नदियां बहती निर्मल कल-कल
हुआ शीतल धरा का अंतस्थल
पवन भी महकने लगी पुरवाई
सांसे चलने लगी निर्मल निश्चल।

प्रकृति ने ओढ़ ली हरी चुनरिया
खुशी से हो रही भाव विह्वल।
पशु पक्षी डोले हैं गली-गली
नाच रहा है सारा जंगल ।

है भरने लगा घाव नभ का भी
ले रहा वह भी सांसे चैन की।
फैली है हर ओर असीम शांति                   चंदा की बढ़ती जा रही कांति।

 विश्व में देखो मचा रुदन है
पर यह धरा इस रुदन से मगन है।
मचलती, इठलाती जैसे जतला रही है
तुम को मिली है सजा, यह बतला रही है।

पूरे साल प्रदूषित करके,
मुझे तुम सताते हो।
फिर साल में एक दिन तुम,
पृथ्वी दिवस मनाते हो।

करके छलनी मेरे स्वरूप को
 मिलकर खुशियां मनाते हो।
कैद हुए हो आज घरों में
बोलो क्यों पछताते हो।

 मैं हूं जननी, मैं ही पालक
 तुम सब हो मेरे ही बालक।
 नहीं सुधारी तुमने आदतें तो
और खराब हो जाएगी हालत

ना जल होगा, ना जंगल होगा
फिर ना जीवन में मंगल होगा।
मिट जाएगी यह मानव जाति
 सिर्फ अमंगल ही अमंगल होगा।

अब होश में आओ,और ध्यान लगाओ।
धरा को प्रदूषण के कहर से बचाओ।
छद्म महत्वाकांक्षाओं का कर दो त्याग
शुद्ध सरल जीवनशैली अपनाओ।

जो पर्यावरण शुद्ध स्वच्छ रहेगा
धरा का कोना कोना महकेगा।
कोरोना ना कर पाएगा मनमानी
हर दिन पृथ्वी दिवस मनेगा।
हर दिन पृथ्वी दिवस मनेगा।।।

रचयिता:
रीता गुप्ता (स० अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर

Tuesday, 14 April 2020

कुछ नया करते हैं...

*कुछ नया करते हैं*

आओ बच्चों
कुछ नया करते हैं
गुमसुम बीत रहा है समय
इसे हरा-भरा करते हैं।

स्कूल का वो आंगन नही है तो क्या
इस व्हाट्सअप ग्रुप को ही चलाते हैं
नयी-नयी सुन्दर कृतियों से आओ
 अपने ग्रुप की गैलरी को सजाते हैं।

बोर्ड पे नही पढ़ पा रहे हो तो क्या
कीबोर्ड को लिखने का माध्यम बनाते हैं
मैं प्रश्न लिखूं, तुम लिखो उत्तर
मिलकर अपने-अपने  दिल के भाव दर्शाते हैं।

किताबें नही है पढ़ने को तो क्या
जीवन के अनुभव को माध्यम बनाते हैं
लॉक डाउन के इस इतिहास को
अपने शब्दों से समझते-समझाते हैं।

दुनिया है कैद हुई घरों में आज
इस कैद में भी चलो मिलकर मुस्कुराते हैं
बीत ही जायेगी गम की ये रात अँधेरी
हम मिलकर सोशल डिस्टैंसिंग अपनाते हैं।

फिर से जगेंगे ख्वाब सुनहरे
फिर से हँसेंगे ये उदास चेहरे
फिर से घूमेंगी मस्तों की टोली
गूंजेगी सड़कों पर फिर से बोली

फिर से खुलेगा अपना स्कूल
फिर से पढ़ेंगे हम हर दुःख भूल
फिर से मिलकर हम तिरंगा लहरायेंगे
भारत को मिलकर विश्व गुरु बनाएंगे।

रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर



Saturday, 4 April 2020

हां, मैं दिया जलाऊँगी

*'हां, में दिया जलाऊँगी'*
      (०५-०४-२०२०)

हां, मैं दिया जलाऊँगी,
आज मैं दिया जलाऊँगी।

कोरोना को जड़ से मिटाने की खातिर,
स्थिर जीवन को चलाने की खातिर,
निराश मन को जगमगाने की खातिर,
आशा के भाव जगाने की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जलाऊंगी।

स्वदेश प्रेम व मान की खातिर,
मोदी जी के आवाह्न की खातिर,
नर्सों व डॉक्टरों के सम्मान की खातिर,
सीमा पर डटे जवान की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जल आऊंगी।

संक्रमण से बचाती पुलिस की खातिर,
भूखों का पेट भरते सेवादारों की खातिर,
ड्यूटी निभाते हर कर्मचारी की खातिर,
अपमान का घूंट सहते हर रक्षक की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जल आऊंगी।

बिखरती एकता को जोड़ने की खातिर,
टूटते विश्वास की पुनः स्थापना की खातिर,
प्रेम की धारा बहाने की खातिर,
भारत है महान दिखलाने की खातिर।।
हां मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जलाऊंगी।।

रचयिता
रीता गुप्ता (स०अ०)
मा०प्रा०वि०बेहट नं० १
जनपद-सहारनपुर