*शीर्षक: सच्ची श्रद्धांजली*
कहाँ चला तू अ संन्यासी
कदम बढ़े किस दिक् की ओर
पिता सिधारे बैकुंठ धाम को
जननी है तेरी आंसुओ से सराबोर।
तुझे पुकारे तेरे अपने
आ कर ले अंतिम दर्शन आज
नही मिलेगा फिर यह अवसर
संपन्न हो जाएंगे सगरे काज।
मैं तो चला हूँ कर्मक्षेत्र को
जहाँ मचा है क्रंदन अपार
कुछ मानव हैं कोरोना पीड़ित
कुछ भूख से कर रहे हाहाकार।
हाँ, है दुःख मुझे
हुआ हूँ आज पिता से वंचित
पर अति असहनीय होगा ये
यदि हुआ मैं कर्त्तव्य से वंचित।
है पहला धरम मेरा
भूखे को भोजन कराना
रोगी जो तड़पते रोग से
उन्हें जीवन की आस बंधाना।
जो कैद हैं घरों में अपने
उन तक हर सुविधा पहुंचाना
बढ़ते जा रहे कोरोना के
कदमों पे अंकुश लगाना।
हूँ लोक से मैं विरक्त
जनता के दुःख से विरक्त नहीं
है राज स्वीकारा सेवा की खातिर
सुख-वैभव से मैं आसक्त नहीं।
केवल स्व की खातिर जीना
होता ये राजधर्म नही
जनहित खातिर सर्वस्व लुटाना
राजसेवक का कर्म यही।
प्रथम कर्त्तव्यपालन, शेष गौण
पिता से ही शिक्षा पायी है
संकट में फंसे देश को भूलूँ
ये अनीति कभी ना अपनायी है।
करके देश को स्वस्थ, अभय
अपना सेवक धर्म निभाऊंगा
कोई व्यक्ति ना रहे भूखा कही
मैं प्रतिपल दौड़ता जाऊंगा।
पिता मेरे थे बड़े सरल
सहर्ष स्वीकारेंगे मेरेआंसुओं की बलि
देश पा जायेगा जब कोरोना से मुक्ति
वही होगी मेरी पिता को सच्ची श्रद्धांजली
रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर
कहाँ चला तू अ संन्यासी
कदम बढ़े किस दिक् की ओर
पिता सिधारे बैकुंठ धाम को
जननी है तेरी आंसुओ से सराबोर।
तुझे पुकारे तेरे अपने
आ कर ले अंतिम दर्शन आज
नही मिलेगा फिर यह अवसर
संपन्न हो जाएंगे सगरे काज।
मैं तो चला हूँ कर्मक्षेत्र को
जहाँ मचा है क्रंदन अपार
कुछ मानव हैं कोरोना पीड़ित
कुछ भूख से कर रहे हाहाकार।
हाँ, है दुःख मुझे
हुआ हूँ आज पिता से वंचित
पर अति असहनीय होगा ये
यदि हुआ मैं कर्त्तव्य से वंचित।
है पहला धरम मेरा
भूखे को भोजन कराना
रोगी जो तड़पते रोग से
उन्हें जीवन की आस बंधाना।
जो कैद हैं घरों में अपने
उन तक हर सुविधा पहुंचाना
बढ़ते जा रहे कोरोना के
कदमों पे अंकुश लगाना।
हूँ लोक से मैं विरक्त
जनता के दुःख से विरक्त नहीं
है राज स्वीकारा सेवा की खातिर
सुख-वैभव से मैं आसक्त नहीं।
केवल स्व की खातिर जीना
होता ये राजधर्म नही
जनहित खातिर सर्वस्व लुटाना
राजसेवक का कर्म यही।
प्रथम कर्त्तव्यपालन, शेष गौण
पिता से ही शिक्षा पायी है
संकट में फंसे देश को भूलूँ
ये अनीति कभी ना अपनायी है।
करके देश को स्वस्थ, अभय
अपना सेवक धर्म निभाऊंगा
कोई व्यक्ति ना रहे भूखा कही
मैं प्रतिपल दौड़ता जाऊंगा।
पिता मेरे थे बड़े सरल
सहर्ष स्वीकारेंगे मेरेआंसुओं की बलि
देश पा जायेगा जब कोरोना से मुक्ति
वही होगी मेरी पिता को सच्ची श्रद्धांजली
रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर
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