Monday, 12 October 2020

बेटी की फरियाद

 बेटी की फरियाद (11.10.2020)


बेटी दिवस मनाने वालों

इस बेटी की आवाज तो सुनो।

क्या चाहे यह बेटी तुमसे

बेटी की फरियाद तो सुनो।


यह बेटी चाहे दुनिया में आना

तुम पर अपना प्यार लुटाना।

भ्रूण में पर यह मारी जाती

इस दुनिया को देख ना पाती।


बंद करो यह निर्मम हत्या

बेटियों से ही तो आगे बढ़ती है दुनिया।

अगर दुनिया में जड़ ही ना रहेगी

तो कैसे तुम्हारी वंशबेल बढ़ेगी?


बेटी भी पढ़ना लिखना चाहे

डॉक्टर, बैरिस्टर बनना चाहे।

पर कैसे घर से बाहर जाए

वहशी निगाहें उसे सताए।


लड़कों को अपने दो संस्कार

गलत बातों का करें प्रतिकार।

सीटियों, फब्तियों को त्याग करके

बहनों के समान करें सत्कार।


पिता का सहारा मैं बनना चाहूं

उनका मान बढ़ाना चाहूं।

इन कुंठित दरिंदों पर अंकुश तो लगाओ

कैसे इनसे मैं जान बचाऊं???


पीड़िता का दर्द ना कोई समझता

वोट बैंक बना कर यूज़ बस करता।

मीडिया हो, पुलिस हो या हो कोर्ट

सरेआम पीड़िता का रेप है करता।


कानून को सशक्त क्यों ना बनाते

क्यों बार-बार लाचारी दिखाते।

दुष्कर्म करे जो किसी की बेटी से

क्यों ना चौराहे पर फांसी चढ़ाते।


भ्रूण हत्या, दुष्कर्म से जो बच जाती

पढ़ लिख कर नए ख्वाब सजाती।

पिया के घर है जब वह जाती

दहेज का शिकार है वह बन जाती


इस जालिम समाज को समझाओ

बेटी ही दहेज है यह सिखलाओ।

पैसे से बेटी को कभी ना तोलें

सुखी रहे बेटी तो किस्मत खोले।


बेटी की आवाज अब सब बन जाओ

जग में उसको सम्मान दिलाओ।

शिक्षा, सुरक्षा, स्नेह दिलाकर

बेटी का भविष्य उज्ज्वल बनाओ।


रचयिता-:

रीता गुप्ता  (स०अ०)

माॅडल प्राइमरी स्कूल बेहट नं-1 ब्लॉक-साढौली कदीम

जनपद-सहारनपुर

Friday, 24 July 2020

मां- जीवनदायिनी, जीवनप्रवाहिनी

अनुभव की कलम से.....

मिड डे मील की धनराशि छात्रों के खातों में पहुंचाने हेतु आजकल विद्यालय में छात्रों के अभिभावकों के बैंक खातों का कलेक्शन चल रहा है। इसी कारण कुछ दिन से रोज विद्यालय जाना हो रहा है।

स्कूल का क्रेज बच्चों को इतना है कि अपने माता पिता के साथ बच्चे भी स्कूल आ रहे हैं। कारण सिर्फ अपने स्कूल को देखना, अपने टीचर से मिलना और खुशी का अनुभव करना। इसी बीच आज एक असामान्य सी घटना घटी जिसने अति व्यस्तता के बीच भी मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

स्कूल में कक्षा 1 में पढ़ने वाला एक स्पेशल स्टूडेंट उमर भी आज अपने परिवार के साथ स्कूल आया। उमर एक स्पेशल बच्चा है जो कि अति चंचल है। बोल नहीं पाता किंतु एंड्रॉयड फोन को हैंडल करने में पूरी तरह से एक्सपर्ट है। एंड्राइड फोन देखते ही हाथ से छीन लेता है । एक बार फोन को अनलॉक करके उसको दे दो उसके बाद वह खुद ही यूट्यूब पर पहुंच जाता है और अपनी मनपसंद वीडियो देखने लगता है। लेकिन खतरा रहता है कि मानसिक रूप से जिम्मेदार ना होने के कारण वह मोबाइल को तोड़ भी सकता है।

जैसे ही मैंने उसको गेट पर आते हुए देखा तो तुरंत अपना मोबाइल फोन छुपा दिया, मुझे डर था कि हमेशा की तरह वह आते ही मेरा मोबाइल फोन मेरे हाथ से छीन लेगा। और उससे फोन वापस लेना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

लेकिन मैं हैरान रह गई, वह मेरे पास आया ही नहीं। ना ही उसने स्वभावत: मुझसे हाथ मिलाया । ना हंसा, ना शोर मचाया, ना मोबाइल ढूंढने का प्रयास किया। वह चुपचाप दीवार के पास ही खड़ा हो गया और दीवार को देखने लगा। मैंने उसको आवाज भी लगाई किंतु उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

अब मेरा ध्यान उसके साथ आये लोगों पर गया। आज उसके साथ उसकी मां नहीं थी। ‌ उसकी बड़ी बहन तथा एक अन्य रिश्तेदार साथ आई थी। मैंने उनसे पूछा इसकी मां कहां है, वह क्यों नहीं आई?? यह आज इतना शांत कैसे है?? तब उमर की बड़ी बहन ने बताया कि उसकी मां बहुत ज्यादा बीमार है और सहारनपुर हॉस्पिटल में भर्ती है। उमर कभी उनके बिना नहीं रहता, आज अकेले रहना पड़ रहा है, शायद इसीलिए आज यह है शांत है।

मेरा मन बहुत दुखी हुआ, उस बालक की स्थिति को देखकर। उसकी मां उसके लिए उसकी पूरी दुनिया है, उसकी हंसी है, उसकी चंचलता है, उसका मस्तिष्क है, उसके क्रियाकलाप है। अपनी मां के सामने इतना सक्रिय रहने वाला बालक, आज असामान्य रूप से शांत हो चुका था। हम क्लास में उसे कभी शांति से नहीं बैठा पाए। एक या डेढ़ घंटे से अधिक उसे स्कूल में नहीं रोक पाए। लेकिन आज अपनी मां के बिना वह बालक बिल्कुल शांति से बैठा था या यह कहिए कि खुद को बेजान महसूस कर रहा था।

वैसे तो मां की शक्ति को हर कोई हर समय अपने साथ महसूस करता है। किंतु एक असामान्य बुद्धि वाला बालक उसे कितना ज्यादा महसूस करता है इसका उदाहरण आज मेरे समक्ष था।

मेरे पास बेहद ज्यादा काम था जिसके कारण मेरे लिए उमर से बात कर पाना आज संभव नहीं था। बावजूद उसके, उसकी उदासी को देखकर मन में भाव लगातार उमड़ रहे थे। मैं बार-बार बस भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी कि भगवान इसकी मां को बिल्कुल ठीक कर देना ताकि यह नन्हा सा अबोध बालक कुछ तो खुद को संभाल सके। भगवान को छोटे बच्चों को उनकी मां से कभी जुदा नहीं करना चाहिए क्योंकि बच्चों के लिए उनकी मां ही उनकी पूरी दुनिया है।

(ईश्वर कृपा से अब उमर की मां बिल्कुल ठीक है।)

रीता गुप्ता
सहायक अध्यापिका
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नं- 1
सहारनपुर

Monday, 20 April 2020

सच्ची श्रद्धांजली

*शीर्षक: सच्ची श्रद्धांजली*

कहाँ चला तू अ संन्यासी
कदम बढ़े किस दिक् की ओर
पिता सिधारे बैकुंठ धाम को
जननी है तेरी आंसुओ से सराबोर।

तुझे पुकारे तेरे अपने
आ कर ले अंतिम दर्शन आज
नही मिलेगा फिर यह अवसर
संपन्न हो जाएंगे सगरे काज।

मैं तो चला हूँ कर्मक्षेत्र को
जहाँ मचा है क्रंदन अपार
कुछ मानव हैं कोरोना पीड़ित
कुछ भूख से कर रहे हाहाकार।

हाँ, है दुःख मुझे
हुआ हूँ आज पिता से वंचित
पर अति असहनीय होगा ये
यदि हुआ मैं कर्त्तव्य से वंचित।

है पहला धरम मेरा
भूखे को भोजन कराना
रोगी जो तड़पते रोग से
उन्हें जीवन की आस बंधाना।

जो कैद हैं घरों में अपने
उन तक हर सुविधा पहुंचाना
बढ़ते जा रहे कोरोना के
कदमों पे अंकुश लगाना।

हूँ लोक से मैं विरक्त
जनता के दुःख से विरक्त नहीं
है राज स्वीकारा सेवा की खातिर
सुख-वैभव से मैं आसक्त नहीं।

केवल स्व की खातिर जीना
होता ये राजधर्म नही
जनहित खातिर सर्वस्व लुटाना
राजसेवक का कर्म यही।

प्रथम कर्त्तव्यपालन, शेष गौण
पिता से ही शिक्षा पायी है
संकट में फंसे देश को भूलूँ
ये अनीति कभी ना अपनायी है।

करके देश को स्वस्थ, अभय
अपना सेवक धर्म निभाऊंगा
कोई व्यक्ति ना रहे भूखा कही
मैं प्रतिपल दौड़ता जाऊंगा।

पिता मेरे थे बड़े सरल
सहर्ष स्वीकारेंगे मेरेआंसुओं की बलि
देश पा जायेगा जब कोरोना से मुक्ति
वही होगी मेरी पिता को सच्ची श्रद्धांजली

रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर

पृथ्वी की पुकार


पृथ्वी दिवस के अवसर पर लिखी गयी यह कविता सभी भारतवासियों को समर्पित🙏🙏🇮🇳🇮🇳

*शीर्षक: पृथ्वी की पुकार*

है थम गया सारा कोलाहल
धरा हौले हौले मुस्कुराने लगी है।
दब गई थी जो प्रदूषण के नीचे
वह उमंगे बाहर आने लगी हैं।

है मानव आज आबद्ध जंजीरों में
कोरोना ने विश्व को बंदी किया है।
मानव का सर दर्द बढ़ता जा रहा
पर धरा के लिए ये वरदान बना है।

 हैं नदियां बहती निर्मल कल-कल
हुआ शीतल धरा का अंतस्थल
पवन भी महकने लगी पुरवाई
सांसे चलने लगी निर्मल निश्चल।

प्रकृति ने ओढ़ ली हरी चुनरिया
खुशी से हो रही भाव विह्वल।
पशु पक्षी डोले हैं गली-गली
नाच रहा है सारा जंगल ।

है भरने लगा घाव नभ का भी
ले रहा वह भी सांसे चैन की।
फैली है हर ओर असीम शांति                   चंदा की बढ़ती जा रही कांति।

 विश्व में देखो मचा रुदन है
पर यह धरा इस रुदन से मगन है।
मचलती, इठलाती जैसे जतला रही है
तुम को मिली है सजा, यह बतला रही है।

पूरे साल प्रदूषित करके,
मुझे तुम सताते हो।
फिर साल में एक दिन तुम,
पृथ्वी दिवस मनाते हो।

करके छलनी मेरे स्वरूप को
 मिलकर खुशियां मनाते हो।
कैद हुए हो आज घरों में
बोलो क्यों पछताते हो।

 मैं हूं जननी, मैं ही पालक
 तुम सब हो मेरे ही बालक।
 नहीं सुधारी तुमने आदतें तो
और खराब हो जाएगी हालत

ना जल होगा, ना जंगल होगा
फिर ना जीवन में मंगल होगा।
मिट जाएगी यह मानव जाति
 सिर्फ अमंगल ही अमंगल होगा।

अब होश में आओ,और ध्यान लगाओ।
धरा को प्रदूषण के कहर से बचाओ।
छद्म महत्वाकांक्षाओं का कर दो त्याग
शुद्ध सरल जीवनशैली अपनाओ।

जो पर्यावरण शुद्ध स्वच्छ रहेगा
धरा का कोना कोना महकेगा।
कोरोना ना कर पाएगा मनमानी
हर दिन पृथ्वी दिवस मनेगा।
हर दिन पृथ्वी दिवस मनेगा।।।

रचयिता:
रीता गुप्ता (स० अ०)
प्राथमिक विद्यालय बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर

Tuesday, 14 April 2020

कुछ नया करते हैं...

*कुछ नया करते हैं*

आओ बच्चों
कुछ नया करते हैं
गुमसुम बीत रहा है समय
इसे हरा-भरा करते हैं।

स्कूल का वो आंगन नही है तो क्या
इस व्हाट्सअप ग्रुप को ही चलाते हैं
नयी-नयी सुन्दर कृतियों से आओ
 अपने ग्रुप की गैलरी को सजाते हैं।

बोर्ड पे नही पढ़ पा रहे हो तो क्या
कीबोर्ड को लिखने का माध्यम बनाते हैं
मैं प्रश्न लिखूं, तुम लिखो उत्तर
मिलकर अपने-अपने  दिल के भाव दर्शाते हैं।

किताबें नही है पढ़ने को तो क्या
जीवन के अनुभव को माध्यम बनाते हैं
लॉक डाउन के इस इतिहास को
अपने शब्दों से समझते-समझाते हैं।

दुनिया है कैद हुई घरों में आज
इस कैद में भी चलो मिलकर मुस्कुराते हैं
बीत ही जायेगी गम की ये रात अँधेरी
हम मिलकर सोशल डिस्टैंसिंग अपनाते हैं।

फिर से जगेंगे ख्वाब सुनहरे
फिर से हँसेंगे ये उदास चेहरे
फिर से घूमेंगी मस्तों की टोली
गूंजेगी सड़कों पर फिर से बोली

फिर से खुलेगा अपना स्कूल
फिर से पढ़ेंगे हम हर दुःख भूल
फिर से मिलकर हम तिरंगा लहरायेंगे
भारत को मिलकर विश्व गुरु बनाएंगे।

रचयिता:
रीता गुप्ता (स०अ०)
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नं-1
जनपद- सहारनपुर



Saturday, 4 April 2020

हां, मैं दिया जलाऊँगी

*'हां, में दिया जलाऊँगी'*
      (०५-०४-२०२०)

हां, मैं दिया जलाऊँगी,
आज मैं दिया जलाऊँगी।

कोरोना को जड़ से मिटाने की खातिर,
स्थिर जीवन को चलाने की खातिर,
निराश मन को जगमगाने की खातिर,
आशा के भाव जगाने की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जलाऊंगी।

स्वदेश प्रेम व मान की खातिर,
मोदी जी के आवाह्न की खातिर,
नर्सों व डॉक्टरों के सम्मान की खातिर,
सीमा पर डटे जवान की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जल आऊंगी।

संक्रमण से बचाती पुलिस की खातिर,
भूखों का पेट भरते सेवादारों की खातिर,
ड्यूटी निभाते हर कर्मचारी की खातिर,
अपमान का घूंट सहते हर रक्षक की खातिर।।
हां, मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जल आऊंगी।

बिखरती एकता को जोड़ने की खातिर,
टूटते विश्वास की पुनः स्थापना की खातिर,
प्रेम की धारा बहाने की खातिर,
भारत है महान दिखलाने की खातिर।।
हां मैं दिया जलाऊंगी,
आज मैं दिया जलाऊंगी।।

रचयिता
रीता गुप्ता (स०अ०)
मा०प्रा०वि०बेहट नं० १
जनपद-सहारनपुर

Friday, 27 March 2020

व्यथित मनुहार

*व्यथित मनुहार*

मैं क्या गाऊँ
मेरे शब्द खो गए....
देखकर ये दुःख दारुण
निःशब्द नैना हो गए....

गुमसुम हुए सतरंगी झूले
गुमसुम है खिलखिलाता बचपन...
बोझल, पथराई आँखों से
गायब हो गए सारे स्वप्न....

हर तरफ रूदन, आहें हैं फैलीं
टूटती, हांफती साँसे हैं फैलीं....
खिलते थे जहाँ फूल गुलाबी
उनकी जगह लाशों ने ले ली....

रो रहा है सिसककर,  गुलाब भी आज
कहाँ गया वो वजूद, था जिसपे नाज़....
प्रिय की सेज पे, इतराता था जो
चढ़ रहा है लाइन से, कोफिनों पे आज....

घर के वट वृक्ष, कहाने वाले
इंसानों को तड़पते,  देख रहे आज....
मानवों की जान बचाने वाले
भगवानों को भी मरता, देख रहे आज....
इटली जो खनकता था, हंसी से हरदम
मरघट में बदलता, देख रहे आज....

आह प्रभु! अब तो कर दो रहम
तेरी कृपा से, दम पा जाए बेदम
रोको क्रूर कोरोना के बढ़ते कदम
हाँ तुम ही हो सर्वशक्तिशाली....
टूट चुके हैं हमारे सारे भरम।।।

रीता गुप्ता (स०अ०)
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नम्बर-1, सहारनपुर

Saturday, 21 March 2020

कविता कैसे बने...

*कविता कैसे बने*

छाया धरा पे हाहाकार,
हो रहा हर कोई बीमार,
लाचार पड़ी मानवता आज।
कविता कैसे बने।।

एक विषाणु ने किया अपंग,
मानव तन-मन भयभीत तंग,
सिसक रहा हर इक तख्तो-ताज़।
कविता कैसे बने।।

बिखरी पीड़ा, दुःख, दर्द, आह,
बीमारों को ना मिल रही बांह,
अकेली रो रही लाशें आज।
कविता कैसे बने।।

हर कोई है अवाक, अनजान,
करें कैसे इसका समाधान,
कहाँ से ढूंढे कोई इलाज।
कविता कैसे बने।।

हुए सब कैद घरों में आज
ठप्प हुए सबके काम-काज
मातम ही मातम पसरा आज।
कविता कैसे बने।।

वीरान हुए गिरजाघर, मंदिर
गली, राजपथ, गांव, शहर
डरे मानव से मानव आज।
कविता कैसे बने।।

कांपे धरा का कोना-कोना
हर तरफ फैला है कोरोना
हवा की भी सीरत है नासाज़
कविता कैसे बने।।

हजारों गवां बैठें हैं जान,
कल का चमन, आज शमशान,
रुदाली के अश्क भी सूखे आज।
कविता कैसे बने।।

रीता गुप्ता
(स०अ०)
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नम्बर-1, सहारनपुर

Saturday, 14 March 2020

दुष्ट कोरोना- यहाँ से भागो ना

*दुष्ट कोरोना- यहाँ से भागो ना*

मुरझाई है दुनिया की फुलवारी
धरती पे फैली है महामारी

इटली, चीन, अमेरिका, बार्सिलोना
हर तरफ फैला है कोरोना

पटरी से उतरी है सबकी गाड़ी
घर में कैद हुए नर-नारी

काम-धंधे बेहाल हो गए
चिकन वाले कंगाल हो गए

हाथ मिलाना पड़ रहा भारी
छूते ही मिलती है बीमारी

साँस के जरिये फ़ैल रही बीमारी
बीमार के लिए मास्क बड़ा जरुरी

मास्क, सेनिटाइजर की मांग चढ़ रही
जमके कालाबाजारी बढ़ रही।

टिकटोक वालों का चल रहा धंधा
कोरोना गुरु बना हर बंदा

स्कूल, कॉलेज सब बंद पड़े हैं
मॉल, सिनेमा में ताले जड़े हैं।

खेल के मैदान सब सूने पड़ गए
मार के छक्का, कप्तान बॉल ढूंढ़ रहे

चीन- अमेरिका में ठन रही रार
कोरोना संक्रमण है या जैविक वॉर

अर्थव्यवस्था बेहाल हो रही
सेंसेक्स नित धरती को छू रही

दक्षेस भी हैं बहुत घबराये
मोदीजी से आस लगाए

मोदीजी कुछ करो उपाय
कोरोना का नाम मिट जाए

विश्व ये सारा सनातन हो रहा
चर्च, कब्रिस्तान भी शमशान हो रहा

छोड़ माँस को शाकाहार अपना रहा
करके नमस्कार कोरोना को भगा रहा

मम्मियों के लिए चुनौती बना
बच्चों का स्कूल बंद होना

जल्दी से भागो दुनिया से
अब ओ दुष्ट कोरोना-कोरोना

लेखिका:
रीता गुप्ता
(स०अ०)
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट न० 1
सहारनपुर