Friday, 25 October 2019

दीपावली- कुछ नई

*दीपावली- कुछ नई*

इस दिवाली आओ मिलजुल
कुछ ऐसा सब जतन करें
दीप ऐसा सब जलाएं
जो हर दीप रोशन करे।

है अमावस घोर अँधेरी
जिनके जीवन में नित यहाँ
उनके जीवन में उजाले
लाने का कुछ प्रयत्न करें।

हैं तड़पते रोटियों को
बालक गली में भटक रहे
अपने लड्डू की मिठास से
आओ उन्हें भी तृप्त करें।

फ़टी धोती में तन को ढकती
लजाती चाकरी कर रही
तन को ढककर उस नारी के
कोमल हृदय को कृष्णमय करें।

राह तक-तक फौजी सुत की
हाँफता जो बाप बूढ़ा
लगके उर से उस व्यथित के
उसके मन को रंजन करें।

शांति धाम में ढूंढती शांति
जो परिवारी बेघर अबलाएं
बनके उनके परिवारीजन
उनके कुछ पल आनंदित करें।

डेंगू पीड़ित कुछ बेचारे
जिंदगी को तरस रहे
करके रक्तदान उनके घर में
दीवाली की उम्मीदें रोशन करें।

खनक फैले दूर तक
खिलखिला उठे ये वसुंधरा
आओ मिलकर यूँ हंसे सब
जन-जन के हृदय को मुदित करें।

सभी बंधुओं को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

धनतेरस पर कुबेर जी आपका खजाना सदैव भरा रखें🍫🍫
नरक चतुर्दशी पर जीवन के समस्त दुःख संताप मिटें🌹🌹
दीपावली पर माँ लक्ष्मी साक्षात् आपके घर विराजमान हों🚩🚩

शुभकामनाओं सहित🙏🏻🙏🏻
रीता गुप्ता
सहारनपुर

Friday, 18 October 2019

एहसास...

एहसास....
एक अद्धभुत रोमांच......

मन ही मन जी उठना है एहसास
खुद में ही मर जाना है एहसास

निरतंर आगे बढ़ने का एहसास
जीवन के ठहर जाने का एहसास

देखकर किसी को प्रेम का एहसास
खुद की असफलता पर पछतावे का एहसास

 भोले बालक को देख स्नेह का एहसास
भेद फैलाते लोगों को देख, नफरत का एहसास

खिले फूलों को देख, गुदगुदाता सा एहसास
सुगन्धित समीर में महकता हुआ एहसास

अकेली अँधेरी रात में डरता सा एहसास
पिया के आलिंगन में निखरता सा एहसास

ड्यूटी के समय कर्त्तव्य पालन का एहसास
छिनते अधिकारों को देख विद्रोही सा एहसास

माँ को देख बचपने का एहसास
बच्चों को देख ममतामयी एहसास

वर्तमान में रहकर भूत में जीने का एहसास
वर्तमान में रह भविष्य को पाने का एहसास

जो नही मिला, उसे पाने का एहसास
जो मिल गया उसे गंवाने का एहसास

ख़ुशी के पलों में गम का एहसास
सुरक्षित क्षणों में असुरक्षा का एहसास

साथ रहते हुए भी बिछड़ने का एहसास
बिछड़े हुओं से पुनः मिलन का एहसास

बिना परिश्रम के धन पर दर्प का एहसास
 हर मिलती उपलब्धि पर गर्व का एहसास

एहसास ही जीवन है
एहसास ही मरण है
एहसास ही ख़ुशी है
एहसास ही रूदन है
एहसास ही उपलब्धि है
एहसास ही वंचन है
एहसास ही दोस्त है
एहसास ही दुश्मन है

सिर्फ एहसास ही दुनिया के रंगमंच का कारण है......

Monday, 14 October 2019

संस्कार निर्माण में शिक्षक की भूमिका

*संस्कार निर्माण में शिक्षक की भूमिका*

'शिक्षा का सामान्य उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास है।' शिक्षा वह धुरी है जो बालक के जन्म के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है तथा जीवन पर्यन्त चलती है। इसके प्रमुख रूप हैं औपचारिक व अनौपचारिक। अनौपचारिक शिक्षा बालक घर व समाज से प्राप्त करता ही है किंतु औपचारिक शिक्षा हेतु उसे अनिवार्य रूप से विद्यालय में प्रवेश लेना होता है।

औपचारिक शिक्षा के केंद्र विद्यालय की बालक के व्यक्तित्व निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका है। यहाँ प्राप्त पुस्तकीय ज्ञान ही उसके कर्मक्षेत्र का आधार बनता है। इसी शिक्षा के आधार पर कोई बालक शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या कुछ और बन पाता है। यही शिक्षा उसके आगामी जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।

सवाल यह उठता है कि बालक को सफल सर्विसमैन या बिजनेसमैन बनाने वाली शिक्षा ही क्या उसके लिए पर्याप्त है??

क्या पुस्तक पढ़ने मात्र से कोई बालक ईमानदार, सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ व देशभक्त बन सकता है??

क्या पुस्तक पढ़ने मात्र से आप किसी को इंसान (इंसानियत से परिपूर्ण) बना सकते हैं??

मेरे निजी विचार से ऐसा संभव नही है। पुस्तकीय ज्ञान के साथ परम अनिवार्य है बच्चों को संस्कार व आचरण की शिक्षा देना। कुछ लोग मानते हैं कि संस्कार सिखाना परिवार का कार्य है। स्कूल के लिए यह विषय अनिवार्य नही है। किन्तु मेरे विचार से संस्कार निर्माण में स्कूल की ही सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्राथमिक स्तर पर बच्चा सबसे अधिक प्रभावित होता है अपने शिक्षक से। उसके लिए शिक्षक की बात पत्थर की लकीर होती है। अपने माता-पिता को भी बच्चा अनसुना कर देता है अपने शिक्षक के लिए। इसी बात का लाभ शिक्षक को मिलता है बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण हेतु। शिक्षक बच्चों को स्नेहपूर्वक अच्छे कार्य करने हेतु प्रोत्साहित कर सकता है। उन्हें उनकी गन्दी आदतें छोड़ने पर सभी के समक्ष पुरुस्कृत कर सकता है। उत्साहवर्धन हेतु मॉर्निंग असेंबली में अच्छे बच्चों हेतु तालियां बजवा सकता है। इससे बच्चे को मानसिक संबल प्राप्त होता है तथा उसे लगता है कि यदि वह रोज यूँ ही अच्छा कार्य करेगा तो उसके शिक्षक रोज ही उसकी प्रशंसा किया करेंगे।

शिक्षक का स्वयं का आचरण भी एक उदाहरण होता है बच्चों हेतु अनुकरण के लिए। शिक्षक का व्यवहार बच्चे को सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही बना सकता है। अनिवार्य है कि शिक्षक संस्कारों की शिक्षा स्वयं के उत्तम आचरण से प्रारंभ करें। बच्चे निश्चित रूप से अपने शिक्षक जैसा ही बनने, दिखने व अनुसरण करने का प्रयास करते हैं।

प्रार्थना सभा का समय सर्वाधिक उपयुक्त है बच्चों में नैतिक मूल्य का विकास करने हेतु। बच्चा शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से तरोताज़ा होता है। इस समय शिक्षक द्वारा की गयी थोड़ी सी प्रशंसा बच्चे को अगले दिन और भी अच्छे स्वरुप में आने हेतु प्रोत्साहित कर देती है।

शिक्षक बच्चों को प्रार्थना सभा में एक सप्ताह तक करने हेतु छोटे-छोटे टास्क दे सकता है, जैसे कि अपने माता-पिता व दादा-दादी की सेवा करनी है। किसी गरीब की मदद करनी है। पेड़ों में पानी देना है या पानी को बर्बाद नही होने देना। एक सप्ताह बाद बच्चे ने जो भी किया उस अनुभव को उसे असेंबली में सभी के साथ साझा करना है। एक बार संकोच करने के उपरान्त बच्चा इसी कार्य को पूरे मन से करेगा। इसके जरिये बच्चे में अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा भाव तो आएगा ही, वह उनकी सेवा करना भी सीखेगा।  उसका अपने बड़ों के प्रति लगाव बढ़ेगा। सभी के सामने अपने अनुभव साझा करने से उसके मन से संकोच का भाव समाप्त होगा, स्वयं को अभिव्यक्त करने की कला आएगी वह एक कुशल वक्ता भी बनेगा।  इस एक्टिविटी को आप हर सप्ताह बच्चे को दीजिये, निश्चित ही इसके सकारात्मक परिणाम परिलक्षित होंगे।

हमें बच्चों को संस्कारी होने के विषय में मात्र बताना नही है बल्कि उन्हें संस्कारी बनाना है। अतः हमें उन्ही गतिविधियों पर बल देना होगा जिनके जरिये उनमें संस्कार स्वयं ही स्थापित हों। संस्कार की शिक्षा किसी विशेष स्कूल, किसी विशेष माध्यम या किसी विशेष राज्य तक सीमित नही है। इसका क्षेत्र संपूर्ण देश है। अतः गतिविधि के रूप में इसे संपूर्ण देश के सभी स्कूलों में कराया जाना अनिवार्य है। तभी हमारी शिक्षा बालक को एक डॉक्टर, एक इंजीनियर, एक शिक्षक होने के साथ-साथ एक सहृदय इंसान बनाने में सफल हो सकती है।

लेखिका
रीता गुप्ता
सहायक अध्यापिका
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेहट नम्बर एक, सहारनपुर

Sunday, 6 October 2019

बिटिया सारे जहान की है.....

*बिटिया सारे जहान की है*

बिखराने को खुशियां इस धरा पर
उतरी देवियां आसमान की हैं
ना तेरी हैं, ना मेरी है
ये तो बिटिया सारे जहान की हैं।

बढ़ाती वंश, चलाती घर को
अपनी हंसी से सजाती घर को
ना हिन्दू हैं, ना मुस्लिम हैं
ये तो बेटी हर इंसान की हैं।

सम्मान यही दिलातीं घर को
दुनिया में पहचान दिलातीं घर को
ना अमीर हैं, ना हैं गरीब
ये तो दौलत सारे जहान की हैं।

सभ्यता भारत की दिखलातीं सबको
संस्कृति से अपनी हर्षाती जग को
ना गोरी हैं, ना काली हैं
ये तो खूबसूरती हिंदुस्तान की हैं।

ससुराल जाती, नया जहाँ बसाती
माँ-बाप को फिर भी भूल ना पाती
ना घर की हैं, ना मायके की हैं
ये तो इज्जत सारे खानदान की हैं।

पिया की ख़ुशी को, खुद के कष्ट छिपाती
आंसुओं को पी जाती, मुस्कान हमेशा बिखराती
ना घबराती है, ना पीठ दिखाती है
ये तो हिम्मत अपने सत्यवान की है।

इसकी इज्जत से ना खिलवाड़ करो
ना एसिड डालो, ना बलात्कार करो
ना फब्तियां हो, ना गालियां हो
ये तो मूरत दिल से सम्मान की है।

ना रुका अगर ये अत्याचार
नारी खुद करेगी फिर प्रतिकार
ना अबला है, ना दुर्बल है
ये तो शक्ति खुद भगवान् की है।
   *रीता गुप्ता*

Saturday, 5 October 2019

जल है तो कल है...

जल है तो कल है
जल से जीवन, जल से उपवन
जल से ही महके सारा ये चमन

जल से मछली, जल से बिजली
जल से खिलती हर कली-कली

जल से मानव, जल से ये विहग
जल से चलता सारा ये जग

जल पर घोर रहा संकट है विकट
है निकट विनाश धरा का अब

मैं भी सक्षम, तू भी सक्षम
हैं लगाये बैठे पानी का मोटर

बहता नाली में पानी हरदम
इसको रोकने का कौन उठाये कदम

तुझसे ऊँची मेरी मूँछें
मुझसे ऊँची तेरी मूँछें
मूँछें अपनी झुकायेगा कौन

ये धरती भी अपनी,
ये जल भी अपना
प्रकृति है अपनी समझायेगा कौन

ना खुद के दिल पर वार करो
वाटर वॉर ना तैयार करो
वॉटर क्राइसिस है सर पर खड़ा
बच्चों का फ्यूचर ना बेकार करो

एक एक बूँद बचाओ जल की
यही तो मुख्य जरूरत है कल की

बिन पानी ना होगा यह चमन
अंगारे बरसायेगा यह गगन

 ना रहेंगे यह पेड़,
 ना बचेगा कोई प्राणी
 ना होगी सुंदर सुबह
 ना रहेगी कागज की कश्ती की कहानी

बस वही जल है, जो निर्मल है
अवशेष तो समुद्र का मल है

निर्मल जल को बचाओ तुम
आने वाली पीढ़ी का भविष्य बनाओ तुम

बिन पानी रोएगा मुन्ना
बिन पानी ना मिलेगा गन्ना
बिन पानी ना बहेगी नदियाँ
बंजर हो जाएगी यह सुंदर धरा

आने वाले कल को सँवारे आज
जल संरक्षण का प्रण करें आज

मन में बस यही भावना प्रबल है
जल है तो कल है
जल है तो कल है।।
    *रीता गुप्ता*

Friday, 4 October 2019

नारी की पुकार

(March 08, 2019)
नारी की पुकार....
माना कि मैं नारी हूँ
पर मैं भी सम्मान की अधिकारी हूँ
मैं भी हूँ इस धरा का हिस्सा
तुम्हारे इस अस्तित्व का किस्सा।

गर्भ की पीड़ा खुद सहकर
परिवार को प्रफुल्लित करने वाली
अपना सर्वस्व समर्पित करके
तुमको सम्राट बनाने वाली।

माँ, पत्नी, बहन बनकर
तुम्हारा आधिपत्य स्वीकारने वाली
तुम्हारा मान बढ़े जग में
इसलिए खुद को सहेजने वाली।

मानव सभ्यता की पोषक
मानवीय संस्कृति की वाहक
सृष्टि का आदि भी हूँ
सृष्टि के अंत तक चलने वाली।

बिन बोले अपनी बात कहूँ
हर बात पे तुम्हारी सजदा करूँ
निश्चित सीमा रेखा में बँध
मैं हरपल नयी उड़ान भरूँ।

फिर पुरुष प्रधान इस समाज में
क्यों मैं ही हरदम पिसती हूँ?
घर हो या कर्मक्षेत्र
क्यों मैं ही हरदम झुकती हूँ?

अस्तित्व देने वाली के
अस्तित्व को क्यों नकारते हो?
क्यों इतनी हेय दृष्टि से
तुम नारी को निहारते हो?

नारी नहीं कोई सजावटी साधन
न ही सिर्फ मनोरंजन का कारण
नारी बच्चे बनाने की मशीन नही
नारी तुम्हारी खरीदी जागीर नही।

नारी भी है एक सहृदय वसना
भाव-परिपूर्ण ईश्वरीय रचना
वह भी तुम्हारा ध्यान चाहती है
समाज में स्थान चाहती है।

कर्म बस एक महान करो
मत नारी का अपमान करो
नारी के बिना अधूरी ये सृष्टि
नारी का भी सम्मान करो।
     *रीता गुप्ता*

(मेरी यह रचना महिला दिवस के अवसर पर मिशन शिक्षण संवाद के ब्लॉग पर प्रकाशित की गयी थी। यह मार्च माह की सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग पोस्ट चुनी गई थी। पुनः यही रचना इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत है।)

Thursday, 3 October 2019

जोया..The Special Child

जोया..The Special Child...

नन्ही सी एक परी है वो
हाँ, बिलकुल वो नादान है
भोला चेहरा, मासूम अदाएं
दुनिया से वो अनजान है
मेरी जोया, मेरी जान है...

ईश्वर की एक अद्भुत कृति
स्वभाव से अति सरल मूर्ति सी
रूप तो दिया, इच्छाएं भी दी
पर सोच शिशु समान है
मेरी जोया, मेरी जान है...

लगती शांत सी, भोली भाली
पर बातें हैं बड़ी निराली
मुझसे छुपकर देखती है मुझको
मेरी ही कॉपी करके मुझको
कर देती वो हैरान है
मेरी जोया, मेरी जान है...

स्कूल आती, मंद मंद मुस्काती
किन्तु गेट पर आकर सकुचाती
बिन स्नेह स्पर्श वो ना खुल पाती
ऊँगली मेरी पकड़ के चलना
यही उसके लिए शान है
मेरी जोया, मेरी जान है...

कभी मुस्काती, कभी चाक चलाती
संग बच्चों के डांस दिखाती
मूड बने तो शोर मचाती,
वरना मूक दर्शक बन जाती
नटखट, चंचल, प्यारी गुड़िया
पर कभी-कभी बहुत शैतान है
मेरी जोया, मेरी जान है...

बहुत स्पेशल, स्नेह की पुजारी
उसकी भोली अदाओं पे मैं बलिहारी
मेरा अख्श दिखाती वो सबको
कामों से अपने रिझाती वो सबको
याद आते ही अक्सर उसकी
खिल जाती चेहरे पे मुस्कान है
मेरी जोया, मेरी जान है....
    *रीता गुप्ता*

Tuesday, 1 October 2019

प्लास्टिक है प्रदूषण रे

*प्लास्टिक है प्रदूषण रे*

हरी-भरी धरा बदरंग हो रही
साँसे धरती की तंग हो रहीं
बदला धरती का आवरण रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

जल में प्लास्टिक, धरा पे प्लास्टिक
जहाँ भी देखो प्लास्टिक-प्लास्टिक
जीव-जंतुओं का हो गया मरण रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

ना ये सड़ती, ना ये गलती
जलाने पर जहरीली गैस निकलती
इसको निपटाने का ना कोई साधन रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

कैंसर रोग की ये है जननी
बढ़ाती हृदय, मस्तिष्क को हरती
सागर का कर रही दूषण रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

रंगबिरंगी पन्नियां, खाली बोतलें
जल मार्ग से होकर समुद्र को चलें
रोकती धरा में जल प्रवहण रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

खग-मृग-जलचर बेहाल सब हुए
प्लास्टिक के ढेर से बदहाल सब हुए
कहाँ पे जाएँ, कहाँ ले जाए
समझ से परे हुआ मैटर रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

छोडो प्लास्टिक, प्राकृतिक पे आओ
जूट, कपड़ा या कागज़ अपनाओ
जीवन में आएगा परिवर्तन रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

घर से बाहर जब भी निकलो
संग कपडे का थैला ले लो
फल, तरकारी, आटा-चावल
रख लो चाहे आभूषण रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।

प्लास्टिक के ढेर को जड़ से मिटा दो
धरा को फिर से हरा-भरा बना दो
मिल जाएगा सबको नवजीवन रे
ये प्लास्टिक है प्रदूषण रे।
   *रीता गुप्ता*