Sunday, 8 September 2019

और बस पल दो पल


माना कि संपर्क टूटा है चाँद से
पर मन में संकल्प और दृढ हुआ है
ऐ चाँद, रुक ठहर जा और दो पल
तेरी बलाएँ उतारने का धागा जमीं पर रह गया है।

आ रहा हूँ मैं फिर से वापस
तुझे छूने को, तुझसे मिलने को
तुझसे मिलने का जज़्बा सच मानो
और अधिक बढ़ गया है।

मेरा देश पूरा व्याकुल है
तुझपे तिरंगा लहराने को
मेरे देश का प्रधान देखो
रातों को जग रहा है।

मेरी आँखों के ये आंसू
कोई मामूली नहीं हैं
इन आंसुओं में छिपी
तुझसे मिलने की बेताबियाँ है

अबकी जब आऊंगा
ना जाऊँगा यूँ खाली हाथ
तुझे जमीं पे उतार लाने का
वादा मैंने इस देश से किया है।

आदरणीय प्रोफेसर सिवान जी को समर्पित यह मेरी कविता।💐💐

13 comments:

  1. Very very inspiring Reeta mam. I loved it.

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  2. हार्दिक आभार

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  3. Very inspiring ! Absolutely true. We shall overcome. Proud of ISRO. Proud of you dear bahan.

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    1. हार्दिक आभार भाई💐💐

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  5. हार्दिक आभार सर💐💐

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  6. हार्दिक आभार सर💐💐

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    1. हार्दिक आभार प्रीति मैंम💐💐

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  7. प्रोत्साहित करने वाली कविता है बहुत ख़ूब

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    1. हार्दिक आभार आपका💐💐

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  8. बहुत खूब पंक्तियां लिखी हैं

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