माना कि संपर्क टूटा है चाँद से
पर मन में संकल्प और दृढ हुआ है
ऐ चाँद, रुक ठहर जा और दो पल
तेरी बलाएँ उतारने का धागा जमीं पर रह गया है।
आ रहा हूँ मैं फिर से वापस
तुझे छूने को, तुझसे मिलने को
तुझसे मिलने का जज़्बा सच मानो
और अधिक बढ़ गया है।
मेरा देश पूरा व्याकुल है
तुझपे तिरंगा लहराने को
मेरे देश का प्रधान देखो
रातों को जग रहा है।
मेरी आँखों के ये आंसू
कोई मामूली नहीं हैं
इन आंसुओं में छिपी
तुझसे मिलने की बेताबियाँ है
अबकी जब आऊंगा
ना जाऊँगा यूँ खाली हाथ
तुझे जमीं पे उतार लाने का
वादा मैंने इस देश से किया है।
आदरणीय प्रोफेसर सिवान जी को समर्पित यह मेरी कविता।💐💐
Very very inspiring Reeta mam. I loved it.
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteVery inspiring ! Absolutely true. We shall overcome. Proud of ISRO. Proud of you dear bahan.
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई💐💐
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ReplyDeleteGood
ReplyDeleteReal description...
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रीति मैंम💐💐
Deleteप्रोत्साहित करने वाली कविता है बहुत ख़ूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका💐💐
Deleteबहुत खूब पंक्तियां लिखी हैं
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