Wednesday, 18 September 2019

बहुत तलाश किया...

बहुत तलाश किया...

मगर नही मिला कोई ऐसा

जो कहे वो है सर्व-ज्ञानी
जो कहे वो है सर्व-शक्तिशाली
जो कहे वो है सर्व-संतोषी
जो कहे वो है स्वयं में पूर्ण

फिर ये कौन हैं

जो भरे फिरते हैं अहंकार से
दम्भ भरते हैं अकूत दौलत का
दिखावा करते हैं भंगुर रूप का
जताते है आतंक अपनी ताकत का
प्रदर्शन करते हैं अपने ज्ञान का

अंत समय जब आएगा

क्या ले जा पाएंगे साथ
एक इकन्नी भी??

बचा पाएंगे ये रूप 
अग्नि में भस्म होने से??

उठा पाएंगे अपनी अर्थी
स्वयं के हाथों से??

कर पाएंगे गीता-पाठ,
स्वयं की सदगति हेतु??

आह! कितना कमज़ोर है मानव
जन्म के समय भी पराश्रित
मृत्यु के समय भी पराश्रित

फिर क्यों मची है होड़
जग में खुद को श्रेष्ठ जताने की
क्यूँ भाई खोद रहा है खाई
भाई को गर्त में पहुँचाने की।।

*रीता गुप्ता*

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