Tuesday, 17 September 2019

नादान ज़िन्दगी

:नादान जिंदगी:

ऐ नादान जिंदगी
जरा चैन तो ले ले
अभी तो मैं खुलकर हंसी भी नहीं हूँ

सर पे रहा है बोझ जिम्मेदारियों का
अभी तो ठीक से मुक्त भी नही हुई हूँ

क्या सखियां, क्या सिनेमा, क्या मेले-ठेले
मैं तो अपनी दुनिया की ईंटे सजाती रही हूँ

क्या सुंदर पोशाकें, क्या सुन्दर गहने
मैं तो अभी अपना आईना बनाने में लगी हूँ

ना चाहूँ दुनिया के महलों के सुख
मैं तो दुखियारों की झोपड़ी सजाने चली हूँ

पैसे से कब सुख मिला है किसी को
मैं तो बच्चों के संग हंसने-खिलखिलाने चली हूँ

चार धाम करके भी कब मिला है भगवान
इंसानों के आँसू पोंछ, मैं भगवान् को पाने चली हूँ

तू तो रोके नही रूकती, हरदम भागती है
मैं तो खुद को खोकर तुझे पाने चली हूँ

मरना तो अंतिम सत्य है इस दुनिया का
मरने से पहले मैं अपने निशान, धरा पे बनाने चली हूँ

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